जय सविता जय जयति दिवाकर!, सहस्त्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥ भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!...
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
अर्थ: पवित्र मन से इस पाठ को करने से भगवान शिव कर्ज में डूबे को भी समृद्ध बना देते हैं। यदि कोई संतान हीन हो तो उसकी इच्छा को भी भगवान शिव का प्रसाद निश्चित रुप से मिलता है। त्रयोदशी (चंद्रमास का तेरहवां दिन त्रयोदशी कहलाता है, हर चंद्रमास में दो त्रयोदशी आती more info हैं, एक कृष्ण पक्ष में व एक शुक्ल पक्ष में) को पंडित बुलाकर हवन करवाने, ध्यान करने और व्रत रखने से किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं रहता।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए more info इच्छित वर॥
. शिव चालीसा लिरिक्स के सरल शब्दों से भगवान शिव को आसानी से प्रसन्न होते हैं
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥ वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीस।
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥